
इस हफ्ते सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक ऐसा रक्षा समझौता किया है, जो दक्षिण एशिया और खाड़ी देशों के समीकरणों को बदल सकता है।
एक ओर पाकिस्तान — एक परमाणु संपन्न, युद्ध-अनुभवी सैन्य राष्ट्र; दूसरी ओर सऊदी अरब — आर्थिक महाशक्ति लेकिन सैन्य रूप से अपेक्षाकृत निर्भर।
“एक के पास बम है, एक के पास बैलेंस शीट — मिल गए तो बाज़ार भी गरजेगा, और बारूद भी।”
क्या है समझौते की सबसे बड़ी बात?
इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो दूसरा देश उसे अपने ऊपर हमला मानेगा।
इसके अलावा:
थल, वायु और नौसेना का संयुक्त सहयोग। खुफ़िया जानकारी का आदान-प्रदान। प्रशिक्षण, हथियारों की सप्लाई और रणनीतिक वार्ताएं। पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं की छाया में सऊदी को ‘गैर-आधिकारिक सुरक्षा गारंटी’।
“अब दुश्मन को पाकिस्तान पर हाथ डालने से पहले दो बार सोचना होगा — और सऊदी के तेल टैंकों को देखते हुए तीसरी बार।”
पाकिस्तान को क्या फ़ायदे मिलेंगे?
पहले भी सऊदी ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद दी है। अब यह समर्थन और औपचारिक हो गया है। तेल ख़रीद पर डिफर्ड पेमेंट, सीधे कर्ज़ और निवेश की उम्मीद। सऊदी के फंड से अमेरिकी हथियारों की खरीद की जा सकती है। ट्रंप की वापसी की चर्चाओं के बीच अमेरिका हथियार बेचने को इच्छुक भी है। पाकिस्तान की ऊर्जा ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा सऊदी से आता है। अब यह आपूर्ति रणनीतिक आश्वासन के साथ आएगी।
क्या यह ‘इस्लामिक NATO’ की शुरुआत है?
विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता भविष्य में अन्य अरब देशों को भी जोड़ सकता है। पाक रक्षा मंत्री ने कहा कि “दरवाज़े खुले हैं”।
अर्थात, क़तर, यूएई, मिस्र जैसे देश भी इस सुरक्षा गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। “इस्लामिक वर्ल्ड के Avengers Assemble कर रहे हैं क्या?”
क्या चिंता होनी चाहिए?
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य टकराव (‘ऑपरेशन सिंदूर’) के बाद यह समझौता नई जटिलता लाता है।
क्या सऊदी अब पाकिस्तान की पीठ पर खड़ा होगा?

क्या भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है?
क्या भारत की पश्चिम एशिया नीति को रणनीतिक झटका लगेगा?”MBBS यानी ‘मोदी-बिन सलमान-समन्वय’ की जोड़ी अब MBSP (मोदी-बिन सलमान-शहबाज़-परिक्रमा) में बदल जाएगी क्या?
भविष्य की रणनीति: कौन जीतेगा ‘जियो-पॉलिटिक्स का महायुद्ध’?
मिल रहा है पैसा, समर्थन और भरोसा, सैन्य भूमिका में वैधता और अरब दुनिया में प्रतिष्ठा।
सऊदी को:
मिल रही है लड़ाकू क्षमता, सैन्य सलाह और परमाणु छांव। खाड़ी में शक्ति संतुलन साधने का मौका।
भारत को:
रणनीति बदलनी पड़ेगी। प्रवासी नीति, तेल सौदे और कूटनीतिक संतुलन नए फॉर्मूलों पर चलाने होंगे।
‘तेल’ और ‘टैंक’ की इस दोस्ती से भू-राजनीति गरम होने वाली है
जब एक देश परमाणु बम लाता है और दूसरा अरबों डॉलर, तो वो सिर्फ समझौता नहीं होता — ये भूचाल की आहट होती है।
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